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Himanshu Sharma

Tragedy

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Himanshu Sharma

Tragedy

हम मूर्ख बन गए

हम मूर्ख बन गए

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कसम, खाई थी, विद्यालय में,

एक रहेंगे, सागर हिमालय ये!

असला ले इक दूजे पे तन गए,

इस तरह से हम मूर्ख बन गए!


भारत की, यही बस खराबी है,

यहाँ लोग मद्रासी व पंजाबी हैं!

ऐसे टूट के बन कई वतन गए,

इस तरह से हम मूर्ख बन गए!


कहीं पे भाई कहीं भतीजा बैठे,

कहीं पे साला कहीं जीजा बैठे!

प्रतिभावान जाने कहाँ छन गए,

इस तरह से हम मूर्ख बन गए!


विविधता की यही परिभाषा है,

विविध बोलियाँ विविध भाषा है!

भाषा-भेद के हो रहे जतन नए,

इस तरह से हम मूर्ख बन गए!


कुछ लोग, चाहते खाली-स्थान,

भूल गए न टूटेगा ये हिन्दुस्तान!

कुचल देंगे, उठते हुए फन नए,

देखिये, अब न हम, मूर्ख बनेंगे!


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