धूप में
धूप में
तलाश है इक दरख़्त की इस तपती धूप में,
तमन्नाओं से है राह-ए-हयात सुलगती धूप में!
है क़ौस-ए-क़ुज़ह निकला हुआ इस बाराँ में,
लगता है कोई बदली आई बिलखती धूप में!
ज़ुल्फ़ें ये आपकी, दिल को है बाँधती "क़ैस",
दिखीं हैं काकुल-ए-शब-गूँ निकलती धूप में!
शब्दार्थ : क़ौस-ए-क़ुज़ह : इंद्रधनुष; बाराँ : बारिश; काकुल-ए-शब-गूँ : रात की तरह काली ज़ुल्फ़ें