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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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ख्वाब

ख्वाब

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ख्वाबों से ज्यादा मेरा ताल्लुक रहा नहीं है,

और कोई भी ख्वाब अधूरा रहा नहीं है।

नहीं मैं उस ख्वाब की बात नहीं कर रहा,

हां वही जिसे प्यार मुहब्बत इश्क़ कहते हैं।

वो तो सबके जैसे मेरा भी अधूरा रहा है।

क्या है ना मुहब्बत का तो दस्तूर ही यही है,

जितनी सच्ची हो उतनी ही अधूरी रही है।

कभी मुहब्बत पूरी हो ही नहीं सकती,

पूरा होना मुहब्बत की मंजिल भी नहीं है।

पूरी हो जाए तो मुहब्बत खत्म हो जाएगी,

ये विरह ही है जो इश्क़ को जिंदा रखता है।

कभी ख्याल तो आता है मन में ऐसा क्यों है,

इतना प्यार होकर भी कृष्ण राधा से दूर क्यों है।

पर जब दिल की गहराइयों में उतरता हूं,

राधा को सदैव कृष्ण के साथ पाता हूं।

जरूरी तो नहीं इश्क़ है तो जिस्म भी साथ रहे,

इश्क़ के लिए तो इतना ही काफी है दिल जुड़े रहे।

सच कहूं तो ये जो दूरियां होती है,

यही सच्चे प्रेम को जिंदा रखती हैं।

माना कि दिल तड़पता जरूर है मिलने को उनसे,

लेकिन प्यार की आग को जलाए रखती है।

अब मुहब्बत में पाना भी क्या होता है,

जब दिल दो जिस्म एक जान होता है।

सच कहूं प्यार सच्चा हो तो अधूरा ही रहता है,

क्योंकि मिलन के लिए दो होना जरूरी होता है।

जब प्रेम सच्चा हो तो दो का सवाल ही नहीं होता,

इसीलिए शायद श्याम कभी भी राधा का नहीं होता।


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