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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

धीरे धीरे

धीरे धीरे

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धीरे धीरे नज़रों से हो रही है ओझल

अपनी ही ज़िन्दगी, अपनी ही यादें

खो गया बचपन, बीत गई जवानी

समन्दर किनारे खड़े- खड़े रूह मेरी

जैसे कह रही हो 'अलविदा मेरे दोस्त'!

मेरी छोटी सी नैया बढ़ती धीरे धीरे

क्षितिज की ओर - क्षितिज से आगे!

नहीं मोह रुकने का, पीछे मुड़ने का

अब नहीं छलकते आंसू बात-बात पर

 नहीं उचटता मन हर आघात पर!

सोचा था, मन कभी न भरेगा जीवन से

था मन में डर का काला साया अब तक

मगर हवा का झोंका ऐसा आया कहीं से

  ले गया उड़ा कर मेरे हर उद्वेग को

कर दिया शांत मुझे, सुकून ने ली जगह

मन में मचते कोलाहल की, उस हलचल की!

 क्या क्षितिज के उस पार है नई ज़िंदगी

  या बढ़ रही मेरी नैया भंवर की ओर !

          मन है अब लालायित

  उस केन्द्र बिन्दु तक पहुंचने के लिए

           होकर जिसमें लीन

       हो जाएगा जीवन सार्थक!

     जीवन मृत्यु के सवाल जवाब

         करेंगे न अब बेचैन मुझे

          वह पल अब दूर नहीं!

          मंज़िल अब दूर नहीं!



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