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Kaushal Kumar Pandey

Abstract

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Kaushal Kumar Pandey

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मानव

मानव

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मन मस्तिष्क निरंकुश हो कैसे सदमार्ग चले मानव

भावों का हो अभाव जिसमें कैसे सत्कार्य करे मानव।


गूढता भरा यह जीवन है अस्तित्व समझ न आता है,

माया के चक्कर में फंसकर स्वार्थमय कर्म करे मानव।


बस एक कदम उपकार लक्ष्य का लेकर आप बढा़यें तो,

समझो मिट गया कलुष उर का सेवा बिन तर्क करे मानव।


उर में उपकार सजा देखो संकल्पसिद्ध हर हो जाये,

तज भेदभाव के भावों को बस अपना धर्म करे मानव।


सच्ची निष्ठा हर कार्य हेतु जो भी उर धारण कर लेता,

जीता जग में विजयी होकर क्षण क्षण में हर्ष करे मानव।


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