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Vivek Netan

Abstract

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Vivek Netan

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में कौन हूँ

में कौन हूँ

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दिल में दर्द था मगर चेहरा फिर भी मुस्कराता रहा 

कितना फरेबी निकला आईना मुझे फुसलाता रहा 

जिंदगी ठहर गई किसी पुराने बरगद की तरह 

हर शख्श आ -आ के दिए उम्मीदों के जलाता रहा 


में थम सा गया था चौराहे के चबूतरे की तरह 

कोई चला गया बैठ के, कोई ठोकर मारता रहा 

इक बोझ सा है मेरे कंधो पर मजबूरियों का 

में खामोश था और जमाना मुझे गूंगा बताता रहा 


रौशनी खूब बखेरी मैंने सर्द अँधेरी रातो में 

दिए की तरह जला,बुझा,कभी टिमटिमाता रहा 

हाथों की ओट में महफूज करने वाले चंद थे 

हर शख्स सबेरा होने पे मुझे बुझाता रहा 


काम तो आया में हर किसी की जरूरत में 

हर रिश्ता नमक चीनी की तरह निभाता रहा 

नाम मेरा था तो सही हर किसी की जुबान पर 

मुझे गाया नहीं किसी ने ,हर कोई गुनगुनाता रहा 


क्यों सख्सियत मेरी हो गई फरबरी की धुप जैसे 

किसी ने खुश हो के सेका तो कोई झुँझलाता रहा 

अदा किये है फर्ज अपने मैंने राह के पत्थर की तरह 

दर्द तो दिए मगर संभल के चलना सिखाता रहा 


कुछ तबीयत ही मिली थी मुझे फूलों के जैसे 

मौसम दर मौसम खिलता रहा मुरझाता रहा 

किसी ने बस दिल्लगी में कह दिया एक दिन 

और में सच समझ के बेवज़ह मुस्कराता रहा 


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