कैसे कैसे लोग
कैसे कैसे लोग
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चौराहे पर चर्चा मेरी करने लगे हैं लोग
बस कहने भर को मसरूफ हैं लोग
खींच लेते हैं ज़मीं पाँव के नीचे से
यूँ तो फलक का रास्ता बता देते हैं लोग
किस को सौंप दे ये तिश्नगी अपनी
आँख से काजल चुरा लेते हैं लोग
ज़िंदा दरबेशो की कीमत कुछ नहीं
बुतों को खुदा बना लेते हैं लोग
फर्क किसी को नही तेरी मर्ज से
मर्ज को नासूर बना देते हैं लोग
अच्छा हैं चाँद सूरज फलक पर हैं
अक्सर दीवारें ऊँची बना देते हैं लोग!