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Vivek Netan

Abstract

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Vivek Netan

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क्या लगता है तुम्हें

क्या लगता है तुम्हें

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क्या लगता है तुम्हें वक़्त बदल जाएगा

वो पत्थर का ख़ुदा कभी पिघल जाएगा


इबादत ने जिसे मोहसिन क़रार दे दिया

तेरी दुआओं पे वो कभी तरस खाएगा


तेरी खुशामद ने मशहूर कर दिया है उसे

क्यों अब वो वापिस तेरे घर आएगा


जो बीज था अब वो गुलनार हो गया

वो किसी और के घर को महकाएगा



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