मेरे अरमान
मेरे अरमान
मेरे अधूरे अरमान पूरे होते भी तो कैसे होते
कभी चीजे नहीं मिलती कभी पैसे नहीं होते
राते इतनी काली है के चाँद नजर नहीं आता
ओर बदनसीबी यह के सितारे भी नहीं होते
लाख कोशिश की के कश्ती पार लग जाए
मेरे समन्दरों की किस्मत में किनारे नहीं होते
इतनी उलझने है के रातों को नींद नहीं आती
कच्ची नींद में मुझसे सपने भी रफू नहीं होते
फाकाकशी साए की तरह मेरे साथ चिपकी है
ईद गुजर भी गई पर मेरे रोज़े पूरे नहीं होते!
