" पापा में आ गयी ! "
" पापा में आ गयी ! "
२७ मार्च ,
( मेरी बेटी का जन्मदिन )
प्रार्थना से
सपने में
और
सपनों से
हक़ीक़त में
आई
नन्ही-सी परी !
आ कर
बिन शब्दों
के धीरे से बोली
पापा , मैं आ गयी !
दादी-बाबा, नानी -नाना की गोद में
खेलती-मचलती
घुटवन चलती,
ख़ुशियों से
मम्मी -पापा
की
झोली भरती
अंगना- अंगना
डगमग -डग धरती
ठुमकती-ठुमकती
रुनझुन करती,
घर के
हर कोने में
फूलों-सी महकती,
तुतलाते -तुतलाते
चिड़ियों को बुलाती,
दाना चुगाती
उनके संग-संग
खुद भी चहकती,
स्कूल से घर ,
घर से कॉलेज,
भैय्या को डांट कर ,
अपनी ही
पॉकेट मनी बाँट कर ,
अपना ही टिफ़िन
दोस्तों को खिला कर ,
कुछ जीत कर ,
आ कर
बोलती ,
पापा में आ गयी !
दीपावली पर
घंटो रंगोली ,
हजारों रंगों से सराबोर
खेल कर होली ,
आ कर बोलती ,
पापा में आ गयी !
हर सीड़ी
ऊँचाइयों पर चढ़ती,
धारा के साथ-साथ
आगे -आगे
को बढ़ती,
मेरे दुःख
को दूर करती,
मेरे तन-मन में
गहराइयों
तक उतरती,
जीवन के अभावों
को
भावों से भरती,
हमारे जीवन की
बन कर के आशा,
आ कर बोलती ,
पापा में आ गयी !
बन कर दुल्हनियाँ
अपने भैया की
नटखट बहनियाँ,
परदेस पिया के घर चली गयी,
पर आज भी
दोनों कुलों की
लाज बन कर ,
दीपावली पर
देहरी दीपक बन,
घर को
भीतर और बाहर से
जगमग कर,
सावन में
मदमस्त , अल्हड़
हवा बन कर
मन-आँगन भिगो कर ,
भैया की कलाई
की राखी बन कर ,
होली पर
अबीर गुलाल बन कर ,
घर की माटी को
चन्दन बना कर ,
अपने बच्चों में
हमें वो ही
अपना बचपन दिखा कर
आज भी
तो वही ही बोलती है ,
पापा ,में आ गयी !
