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surendra shrivastava

Abstract

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surendra shrivastava

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" पापा में आ गयी ! "

" पापा में आ गयी ! "

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२७ मार्च ,

( मेरी बेटी का जन्मदिन )

प्रार्थना से  

सपने में 

और 

सपनों से  

हक़ीक़त में  

आई 

नन्ही-सी परी !


आ कर 

बिन शब्दों 

के धीरे से बोली 

पापा , मैं आ गयी !


दादी-बाबा, नानी -नाना की गोद में 

खेलती-मचलती 

घुटवन चलती, 

ख़ुशियों से 

मम्मी -पापा 

की 

 झोली भरती

अंगना- अंगना

डगमग -डग धरती 

ठुमकती-ठुमकती 

रुनझुन करती, 

घर के 

हर कोने में 

फूलों-सी महकती, 

 तुतलाते -तुतलाते 

चिड़ियों को बुलाती, 

दाना चुगाती 

उनके संग-संग 

खुद भी चहकती,

 स्कूल से घर , 

घर से कॉलेज,

भैय्या को डांट कर ,

अपनी ही 

पॉकेट मनी बाँट कर , 

अपना ही टिफ़िन 

दोस्तों को खिला कर ,

कुछ जीत कर , 

आ कर 

बोलती , 

पापा में आ गयी  ! 


दीपावली पर 

घंटो रंगोली ,

हजारों रंगों से सराबोर

खेल कर होली ,

आ कर बोलती , 

पापा में आ गयी  ! 


हर सीड़ी

ऊँचाइयों पर चढ़ती, 

धारा के साथ-साथ 

आगे -आगे 

को बढ़ती, 

मेरे दुःख 

को दूर करती, 

मेरे तन-मन में

गहराइयों 

तक उतरती, 

जीवन के अभावों 

को 

भावों से भरती, 

हमारे जीवन की 

बन कर के आशा, 

आ कर बोलती , 

पापा में आ गयी  ! 


बन कर दुल्हनियाँ 

अपने भैया की

नटखट बहनियाँ,

परदेस पिया के घर चली गयी,

पर आज भी

दोनों कुलों की 

लाज बन कर , 

दीपावली पर 

देहरी दीपक बन,  

घर को 

भीतर और बाहर से

जगमग कर, 

सावन में 

मदमस्त , अल्हड़ 

हवा बन कर  

मन-आँगन भिगो कर , 

भैया की कलाई 

की राखी बन कर , 

होली पर 

अबीर गुलाल बन कर ,

घर की माटी को  

चन्दन बना कर ,

अपने बच्चों में 

हमें वो ही 

अपना बचपन दिखा कर 

आज भी 

तो वही ही बोलती है , 

पापा ,में आ गयी ! 



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