हे स्त्री
हे स्त्री
हे स्त्री, यदि तुम हो
शक्ति, बुद्धि और प्रेम
अगर मानती हो
स्वयं को शक्ति तो,
शिव मान कर
मुझे जीना होगा,
रख कर अपने होठ,
मेरे होठों पर,
विष भी मेरे जीवन का
पीना होगा।
स्वीकार कर तुमको,
अर्धनारीश्वर तो में हो गया,
यदि तुम हो प्रेम
मेरे मन में छुपे
ताप-संताप को
स्नेह गंगाजल से
शीतल करना होगा।
भूत-भस्म,सर्प,
भांग, तांडव
सारे अवगुण तो हैं
मुझ नटराज में,
यदि तुम हो बुद्धि
देवतत्व तुम्हें ही
मुझ में ढूँढना होगा।
हे स्त्री, यदि
तुम हो शक्ति,
बुद्धि और प्रेम
तो शिव मान कर
मुझे जीना होगा।
