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Anita Sharma

Abstract

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Anita Sharma

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काव्य अनुष्ठान

काव्य अनुष्ठान

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गहरी नींद नहीं सोती हूँ!

तो आजकल…मैं

ख्वाब नहीं देखती,

घर बना लेती हैं….

कुछ कवितायें

मेरी अलसाई रातों में,

उनको रोज़ सुबह

उकेर देती हूँ कागज़ पर,

खुरचती हूँ महीन महीन

अभिव्यक्ति की मिट्टी को

बन जाती हूँ मैं…अज्ञानी

एक शब्द शिल्पी,

और रफ्ता रफ्ता

शब्दों के हेरफेर से

मूर्त रूप दे देती हूँ

अलबेली कविता को…!

चुनकर अनकहे जज़्बात,

मिल जाते हैं कुछ...

दिल को भाते किरदार,

और साथ निभाते हैं….

कुछ अनजाने भी,

निस्वार्थ साथ देते हैं

कविताओं के जन्म लेने से….

आखिरी श्वास लेने तक,

जिनका आना और जाना

शायद तय करते है...

मेरी सोच और ख्यालात,

और देखा जाए तो

ख़्वाबों से ज़्यादा

ज़मीन पर काबिज़ होती हैं….

तो सिर्फ...वही कवितायें

और इस तरह

ख्वाब भी पूरे होकर

अमर हो जाते हैं,

विस्तार पाते हुए,

किसी महाग्रंथ की तरह!

और पा जाए मोक्ष...

मेरा हर काव्य अनुष्ठान

और स्पर्श कर सकें...हृदयतल


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