पुस्तक मेला
पुस्तक मेला
एक वृक्ष का जीवन समर्पण
पंछियों की रहवट का तर्पण
अंतर्मन से दर्द में हूकते उद्गार
अक्षर भरा...भावों का बाज़ार
स्मृतियों का अथाह....संकलन
कितने बुद्धिजीवियों के आंकलन
कितने गंतव्यों से गुज़रती
छपने को उत्सुक वो किताब
जिसे पढ़ने को...जी जनाब
तलाशने होंगे फिर खरीदार
लगेंगे नए नए...पुस्तक मेले
पुस्तक प्रेमियों के उमड़ेंगे रेले
कुछ प्रतियाँ बिक जाने तक
कुछ कीर्
तिमान बना पाने तक
बिकते बिकाते लगेगा विराम
कुछ पा जाएँगी नया मुकाम
कुछ लग जायेंगी...पुनः सेल
कुछ पहुंचेंगी सीधे किसी ठेल
पर अंत में मिलेगा एक कोना
एक तय वक़्त...गहरी नींद को
बरसों बाद फिर छंटेगी धूल
सम्पादित शब्द...नहीं होगा मूल
फिर प्रेम पा जाएंगी संवादों में
या पुनः फंसेंगी...विवादों में
बरसों बाद फिर संस्तुतियों पर
टटोली जाती रहेंगी.....किताबें!