आजादी
आजादी
सब लोग इस जमाने में हो रहे कैद है
कोई नही कर रहा आसमाँ की सैर है
सबके मन आज अपने वश में नही है,
सब लोग जा रहे यहां इंद्रियों के खेत है
किसको यहाँ अपना दुखड़ा सुनाये ,
सबके दिल हो रहे बेईमानी के रेत है
शरीर से भले वे लोग स्वस्थ दिखते है,
भीतर से हो गये है वो शीशे की बेंत है
मनुष्य की आजादी ढूंढ रहा है ये साखी
कहीं नज़र नही आता आजादी का बैल है
जिधर जाता हूं,उधर ही तन्हा पाता हूं,
हर तरफ़ बनी हुई है झूठ की जेल है
आज ज़माने में आजाद वो शख्स है,
जिसका खुद के मन पे नियंत्रित तेल है।
