भी देख ली
भी देख ली
मेहरबानियों से खूब वाकिफ थे
आज रुसवाईयां भी देख ली
इनायतों की बारिश में भीगे थे कभी
आज नाराजगियों की नुमाइश भी देख ली
बदले में कुछ न चाहने की चाह थी
आज बेमुराद हसरतें भी देख ली
एक आह क्या उठी दिल से
आज मुहब्बत की हदें भी देख ली।
रंजिशों का नामोनिशान न था
आज शिकायतों की रफ्तार भी देख ली
वादों की डोलियां ऊठी थी कभी
आज उनके जनाजों की कतार भी देख ली।

