धरती का इन्सान
धरती का इन्सान
धरती का इन्सान बना मिट्टी से,
मिट्टी को ही अब कुचल रहा
कर्मों में अपने जखडकर देखो,
मुद्दत से बैखोफ उछल रहा।
नेकी कर और दरिया में डाल,
क्यों बल पर अपने है इतराता,
नशा ये कैसा चढा है तुझपर,
क्यों होश तुझे नही आता!
सुख- दुख दोनों है हमजोली,
साथ लेकर इन्हें है चलना,
चाहे आफतों का ढेर लगे,
इंसानियत को कभी न भूलना।
