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Savita Gupta

Tragedy

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Savita Gupta

Tragedy

आरक्षण

आरक्षण

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कैसी है ये प्रथा 

सुनाऊँ किसे व्यथा 

जात पात के तराज़ू में 

तोल दिया बुद्धि के ज्ञाता को 


एक बोझ दबा दिल मे

आँखें बोझिल सी है

उम्मीद का दीया बुझ गया

मेरे पंखों को कुतरा गया


मेरे उमंगों को दबाया गया

मेरे हौसले को कुचला गया

प्रखर प्रबुद्ध होनहार का मोल नहीं 

अंकों का ध्येय नहीं 


परिश्रम सारे व्यर्थ पन्नों से मिट गए

सुली पर चढ़ा दिया गया क्यों?

 कुछ सपने थे 

कुछ जोश भरा था रगों में 

मालूम न था मिट्टी में

ख़्वाब मिलते हैं


भविष्य को जंग लग गई है

लाचारी में वर्तमान लटकी है

आरक्षण का कोढ़ 

नासूर बन रिस रहा अरमानों से


 कुंडली में आरक्षण का योग

कुंडली मार बैठा है क्यों ?

बिखरे हैं पन्ने धूल भरे 

चलो झाड़ पोंछ कर एक 

नया पन्ना लिखते हैं।


भविष्य के लिए वर्तमान से

खुद को सँवारते हैं फिर से 

उठते हैं कुछ नया करते हैं 

हौसलों में जान फूंकते हैं 


शिखर पर चढ़ने की सीढ़ी ढूँढते हैं 

आरक्षण को दफ़्न करने की 

ज़मीन खोदते हैं।


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