सेमर बदरा
सेमर बदरा
श्यामल फाहे घेरे नभ को, बूँदें निर्झर गिरते हैं।
धरा हो रही शीतल- शीतल, पादप खिल खिल जाते हैं।
सेमर बदरा ऐसे बरसो, धुले मैल दिलों से आज,
पीले हो रहे पत्ते सारे, दामन कीचड़ लगते हैं ।
भर जाए सब ताल तलैया, ख़ुश्क कंठ यह कहते हैं ।
मेघ राज के भरे घड़े को , ख़ाली तसले तकते हैं।
मिट जाएगी प्यास धरा की, जीवन मेरा झूमेगा ,
नाव चलेगी केवट की तब, दो आने घर आते हैं।
गीले गीले सावन में अब, खेत मेरे बुलाते हैं ।
इंद्र की अमृत सुधा से, कृषक ख़ुश हो जाते हैं।
टप टप टपकती है मड़इयाँ, आस बालियाँ जगा रही,
झूम रहा अंबुज नशे में, बैलों के घट बजते हैं ।
कूके कोयल सजनी विभोर, मोहक कजरी गाते हैं ।
गूँज रहा कानों में टिप टिप, हिया रागिनी भाते हैं।
बह जाने दो अबकी पावस, ऋतु रिश्तों से कड़वाहट ,
फसलें झूमेंगे रिश्तों के, इंद्रधनुष निकलते हैं ।
झींगुर दादुर टर टर बोले, घाट एक सब रहते हैं।
माह है सृजन का कवि राज, काव्य कलश छलकते हैं।
उमड़ घुमड़ कर बदरा आए, भाव हिलोरे मारे है,
कलम के रस धार से बह कर, रिमझिम पन्ने भरते हैं।