बीते दिनों में
बीते दिनों में


कभी आना न
खिड़की के पास
बात करना
मौन रहकर
आंंखो के रतजगे
दिखा जाना
अंतर की वेदना
उजागर कर जाना
आरोपों के सागर में
डुबकी लगा जाना
शर्तों की सिसकियों में
घावों की हिचकियों में
यादों की हवाओं में
भेज देना चिट्ठियों में
चुपड़ी चांदनी में
स्वाद के चटखारे बीच
कह जाना मीठी सी बात!
कभी आना न! चांदनी रात में
चांद को निहारने
रात के आंगन में!
बीते दिनों में
शंकााएं, हयाएं, तुच्छताएं
जो थी दरकिनार
आज के संदर्भ में जोड़कर
बांध जाना
उसी डोर में
बिना ठिठके
बिना हिचके
बिना सिसके
कभी आना न ! खिड़की के पास !