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Pragya Kant

Abstract Tragedy Others

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Pragya Kant

Abstract Tragedy Others

ज़रूरी है

ज़रूरी है

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जीने को छल का होना भी ज़रूरी है

देख कर छूटता सब फिर मिल पाने की


आस जगाना भी ज़रूरी है जीने की चाह

न छीन ले जाए कोई इसलिए भरमाना


भी ज़रूरी है कहीं जाने के पहले रूक जाना भी ज़रूरी है

उठ कर चले चल कर गिरे कैसे ढलती उमर में

नौजवानों से यह बताना भी ज़रूरी है


 खाक बनने से पहले कुछ तो ज़हन में

दबा कर ले जाना भी ज़रूरी है

झूठा ही सही पर ख्यालों में सपनों को

गले लगाना भी ज़रूरी है !


जो तीर अनजाने में चुभ गया उसकी

पीड़ पर एक आह का आना भी ज़रूरी है 

जीने को जी जाने के लिए एक बहाना भी ज़रूरी है !


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