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Anuradha Negi

Abstract

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Anuradha Negi

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दर्द से हुई मुलाकात

दर्द से हुई मुलाकात

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आज फिर उनकी जब याद बहुत आई

आंखों ने भी अपनी आप बीती सुनाई,


कह रहेे थे थक चुके हैं यूं बहते बहते 

रुुलाने वालेे ने जरा सी व्यथा ना जताई।


कहते हो बीत जायेगी रैन आंखें खोले 

जरा हमसे भी पूछा होता दिन का हाल,


क्या क्या ख्वाब होते हैं सुकून से बोले

इस रैन के लिए सारे दिन रहेे हम डोले।


पलकें बोली वो ना आया, ना ही आएगाा

बस तुम्हें यूहीं रोज और ज्यादा सताएगा,


तू समझ जा वक्त रहते ये फितरत उसकी

अब रोज रोज तो हमसे भी न रोया जाायेगा।


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