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Arunima Bahadur

Abstract

4  

Arunima Bahadur

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न हारेगी नारी

न हारेगी नारी

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मैं तो थी वैदेही कल भी

और हूँ वैदेही आज भी,

कल भी रूप बदल,

रावण तुम छलने आये थे,

और आज भी....


आखिर कब तक,

तुम रूप बदलोगे,

कल मारीच का छल,

साथ ले आये थे,

आज प्रेम का,

छल साथ ले आये हो,


कल भी तुम देह के पुजारी थे,

आज भी तुम देह के पुजारी हो,

पर तब तो शुक्र था,

कि एक ही रावण था दस सिर वाला,

आज तो हर ओर रावण हैं,


और मुझ वैदेही को,

हर रूप में ठगता हैं,

प्रेम का चोला ओढ़,

प्रेम को भी ठगता हैं,

मेरे राम को दोषी बता,

सहानुभूति मुझे देता हैं

और बन छलिया,

मुझ पर ही आक्रमण करता हैं,


पर तु शायद भूल गया दशशन,

मैं तब भी वैदेही थी,

आज भी वैदेही हूँ,

अपने राम की,

राम को ही समर्पित,

न तुम मुझे तब छल पाए थे,


न आज छल पाओगे,

बस होने दो हर अंतस में,

राम का आगमन,

तुम स्वयं ही नष्ट हो जाओगे,

तब रहेगा केवल प्रेम,

जो विराजता हैं,

राम के दिल मे,

सदा सदा से वैदेही के लिए,

पर तुम न समझोगे उसे,


क्योकि,

उसके लिए तो राम बनना होता हैं

और तुम तो उजले वस्त्र में,

केवल एक रावण,

जो छीनना चाहते हो,

नारी का अस्तित्व,

अपने अलग अलग दस रूपों से,


हो सकता हैं,

हारी हो कोई नारी,

पर वैदेही न हारेगी

और न हारने देगी,

नारी को अपना नारीत्व।।


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