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Meera Parihar

Abstract

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Meera Parihar

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उत्तराखंड

उत्तराखंड

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भूमि यह देवों की, देवालय उत्तराखंड।

पर्वत, उत्तुंग नदियां, विस्तृत हिमखंड।।


गोदी में बहें सरिता, कल-कल निनाद मय।

झरने विरल निरंतर धरनि पर हों विलय।।

कहीं शांत ये धाराएं, कहीं बहती हैं प्रचंड।

भूमि यह देवों की, देवालय उत्तराखंड।।


पर्वत शिखर पर खेलें रवि रश्मियों के रंग।

फ्यूली, बुरांश, कांफल, देवदार, चीड़, भंग।।

 भट्ट, गहत, मरुआ किस्में हैं बहु अनन्त।

भूमि यह देवों की देवालय उत्तराखंड।।


नंदा देवी, पंचाचूली, मुंस्यारी, बेरीनाग।

चंडाक, मुष्टमानु, मायावती, रीठा साहब।।

पांगु, नारायण आश्रम, हिमनद, शैलखंड।

भूमि यह देवों की देवालय उत्तराखंड.।।


यहीं गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्री, केदारनाथ।

 दन, चुटकों को बनाते नर नारी साथ-साथ।।

 कद्दू, खीरों को सुखाकर करते सब प्रबंध।

भूमि यह देवों की देवालय उत्तराखंड.।।


हों छोलियों का नर्तन, इतिहास के प्रसंग।

घुघुतिया मनाएं बच्चे, घर-घर में हो प्रसन्न।।

 बाघों के गढ़ में घूमते, मृग,बकरियों के झुंड।

 भूमि यह देवों की देवालय उत्तराखंड.।।


वादियों में बादल कहीं बादलों में धुंध।

उत्सव सभी मनाते गा-गा पहाड़ी धुन।।

कर पकड़ करते नर्तन,गान कर अभंग।

भूमि यह देवों की देवालय उत्तराखंड.।।


पर्वत उत्तुंग नदियां, विस्तृत हिमखंड।

भूमि यह देवों की, देवालय उत्तराखंड।।


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