'कोरोना '
'कोरोना '
मानुष से मानुष फैले, आयी यह विपदा भारी है।
निर्मित विसंगति से परे, आयी विकट महामारी है।
सर्वत्र त्रासदी का यह मंज़र, जो हमारे सामने है।
करे संकल्प उससे, जो संकट हमारे सामने है ।
विश्वास, संयम से, विश्व को नये आयाम देने है।
सम्पूर्ण सामर्थ्य वाले देश, जो इसके सामने बौने है।
देव शनि की कुटिल नजर, इस वर्ष पर भारी है।
नारद संहिता कहे, इसलिए यह विपदा सारी है।
कृत्य कुछ ऐसे, जो कृत्यों से भी अग्र हारी है।
इसलिए पूरी दुनिया में फैली यह महामारी है।
क्यों, कहाँ, कैसे आयी, यह बनी है या बनायी है।
कालांतर ने जो रचायी, फेरब जो पूरब से आयी है।
लोगों से मिलता यह, हाथों में लग जाता है।
आँख, नाक ,मुख से, प्रवेश शरीर में कर जाता है।
प्रारम्भ होता शनैः शनैः, परे सोच समझ से होता है ।
ज्वर बदलता खाँसी में, आघात प्राण पर करता है ।
बचने का इस कष्ट से, उपाय सहज सरल होता हैं।
स्वयं तजे समाज को, बस इतना सा करना होता है
धोये हाथ को बारम्बार, यही उसके अंत का आधार है।
रहो अपने घर बार, वहीं उज्ज्वल भविष्य का आधार है।
शुभेच्छु होकर आपसे "आर्य", करबद्ध प्रणाम करता है।
"को-विड" जैसा रिपु, केवल "को- विद" से ही हारता है।
मानुष से मानुष फैले, आयी यह विपदा भारी है ।
निर्मित विसंगति से परे, आयी विकट महामारी है।