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Anushri Bafna

Abstract

4  

Anushri Bafna

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गुलाबी...

गुलाबी...

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रंग एक, जुड़ा कितनों से...

सारे घर एक ही रंग के...

जो कहलाया शहर गुलाबी,

जहां गुलाबी पूरी आबादी...


एक दुल्हन के लिबास की चुनरी का रंग...

जो सपने सजाए अपने साजन के संग...

होना चाहे वो उसके रंग में गुलाबी,

ले जा डोली, अब देर ना कर ज़रा भी...


ढलती शाम का चढ़ता वो सुरूर...

आसमां भी कर रहा अपने रंग पर गुरूर...

हर पंछी चाहे पाना वो आसमां गुलाबी,

नन्हे परिंदों में उड़ने की उम्मीद जगा दी...


वो बादलों का सुर्ख गुलाबी हो जाना...

और बारिश की बूंदों का उससे प्यार हो जाना...

रहना चाहे बस उसी गुलाबी नूर में,

इतनी मनमोहकता कहां किसी कोहिनूर में...


जब प्यारा सा चांद अपना रंग बदलता है...

आसमां भी बस उसे ही निहारता है...

टिमटिमाते तारों के बीच वो चांद गुलाबी,

खूबसूरती ऐसी के उस रात की सुबह आए ना ज़रा भी...


चढ़ा चाहे कहीं भी हो रंग गुलाबी...

शर्म से किसी के गालों का रंग गुलाबी...

भक्ति के सुर्ख रंग में रंगी मीरा,

या राधा पर चढ़ा प्रेम का गुलाबी रंग गहरा...


सिर्फ रंग नहीं...

हज़ारों कहानियां है गुलाबी...

चढ़ता एक पर नहीं...

हर तरफ बिखरा हुआ है गुलाबी...


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