खेत
खेत
हम जोते जाते थे, बोए जाते थे,
काटे भी जाते थे, और पूजे भी जाते थे।
मोटर, पंप से सींचे जाते थे,
खाद खा कर उपजाऊ हो जाते थे।
हम लहलहाते, खिलखिलाते थे,
हवा में ही महक जाते थे।
मचान से हम निहारे जाते थे,
और पक्षियों का भी घर बन जाते थे।
कईं कहानियों के दर्शक थे,
कईं परिवारों में सबसे बुज़ुर्ग थे।
पर आज हम दुखी थे,
हम अब बिक जो चुके थे।
हमेशा एक किसान के थे,
अब बिल्डर के हो चुके थे।
अब सब कुछ बदल जाएगा,
जोतने की जगह हमें खोदा जाएगा।
फसलों की जगह दीवारों का भार डाला जाएगा,
सुकून है अब भी, कईं लोगों को आसरा मिल जाएगा।
किसी बच्चे का झूला तो मां आज भी लगाएगी,
पर उसके खिलखिलाने की आवाज़ हम तक नहीं आएगी।
अब खुली हवा हम तक नहीं आ पाएगी,
चलो ठीक है, अगली पीढ़ी को भी हमारी कहानी कही जाएगी।
