यादों का मंथन,उन्मुक्त गगन
यादों का मंथन,उन्मुक्त गगन
ज़िन्दगी की ज़द्दोहद में जीवन विकल हो जाता है....
रोज की आपाधापी में बस आजकल मन करता है.....
सारे ग़म भुलाकर बिसरी यादें संजो दूँ,
आसमान को अपना आशियाना बना लूँ,
निलांबर में नीली रोशनी का चक्षुपान करुँ,
और उड़नखटोले को अपनी शैय्या बना लूँ।।
उड़नयान की पहली सीढ़ी पर बैठ जाऊँ,
चन्द्रमा से दोस्ती कर बतियाने लग जाऊँ,
ये तारे क्यों नहीं दिख रहे मुझे,जरा उनसे पूछूं,
हल्का झुक के ज़न्नत से धरा का नज़ारा देखूँ।।
ख़्वाब व हकीकत का फासला जानती हूँ,
देखें हुए हर ख़्वाब सच नहीं ये मैं मानती हूँ,
जीवन में दुःख में ख़्वाबों को सपनों का सेतु मानती हूँ,
ख़्वाबों के खटोले में इस जहान से उस जहान हो आती हूँ।
