हृदयविहीन मानव
हृदयविहीन मानव
जिस तरह मानव संयुक्त परिवार ख़त्म कर रहे हैं,
संयुक्त से एकल परिवार मेँ तब्दील कर रहे हैं,
मानव ऐसा व्यवहार पशु पक्षियों संग कर रहे हैं,
पेड़ों को काटकर ख़गो के आशियाने छीन रहे हैं,
व पशुओं का चारा,छाया दोनों धूमिल कर रहे हैं,
कृत्रिम पेड़ पर पक्षी बिठा छायाचित्र खींच रहे हैं,
पंछी के बहते हुए आँसू हकीकत बयां कर रहे हैं,
मानव पेड़ों को काट प्रकृति का विनाश कर रहे हैं,
जिसका ख़ामियाजा भूमण्डलीय उष्णता से झेल रहे हैं,
अभी जो तापमान हैं उसमें इंसान भी मर रहे हैं,
मत लो किसी की आह,हाय से बहुत कुनबे नष्ट हुए हैं
मनोरंजन के लिये क्यूँ मूक प्राणियों से खेल रहे हैं!
सुधर जाओ वरना सिधर जाओगे कृत्य ऐसे करते हैं,
भुगतेंगे हम सभी प्रकृति की कड़ी को तोड़ रहे हैं,
फल,अनाज,अंडे कुछ नहीं बचेगा क्यों नहीं सम्भलते हैं ?
