धारा
धारा
धारा शिवजी की जटा से निकली,
वो बहकर पावन नदी गंगा बन गई।
धारा प्रेम रस से ओतप्रोत निकली,
कान्हा राधा की प्रेम कहानी बन गईं।
बही धारा जब वात्सल्य से भरी हुईं,
वो नवजात शिशु का भोजन बन गईं।
औलाद के आँख से अश्रु धारा बही,
ममत्व के दामन को आद्र कर गईं।।
पर अश्रु-धारा माँ,पत्नि,बहु की बही,
तो ख़ुद अश्रु पौंछते-पौंछते सो गयी।
