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Kusum Joshi

Classics

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एक कथा: माँ सीता (लव-कुश भाग -5)

एक कथा: माँ सीता (लव-कुश भाग -5)

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राम कथा का अंत किया,

लव कुश ने स्वपरिचय देकर,

हम ही हैं सिय के जाए,

प्रभु आप हमारे पिता पूज्यवर,


वाल्मीकि के आश्रम में ,

हम दोनों ने शिक्षा पायी है,

जो सिया तुम्हारा मान पितु,

वो वन में वनदेवी कहलायी है,


सब संघर्षों में रहती है,

पर मुंह से कुछ ना कहती है,

वो सदा आपको ध्याती है,

पर अश्रु नहीं बहाती है,


वो महलों की अधिकारी है,

पर वन के कष्टों को सहती है,

अयोध्या की महारानी है पर,

दुःख अभाव में रहती है,


अब बहुत हो चुकी कठिन परीक्षा,

अब तो पितु कुछ न्याय करो,

जो सम्मान तुम्हारा है,

अब उसका कुछ सम्मान करो,


सुन करुण कथा सिय की,

नर नारी सब व्याकुल से थे,

हर नयनों से बह रहे नीर,

मात भ्रात शोकाकुल थे,


राम चाहते थे लव कुश को,

हृदयालिंगन प्यार करें,

सब मर्यादा को भूल इसी क्षण,

पुत्रों को स्वीकार करें,


पर राज धर्म की मर्यादा ने,

एक बार पुनः पथ रोक दिया,

भावों के आलिंगन को,

कर्तव्य बोध ने टोक दिया,


पुनः धीरज धारण किया राम ने,

वाल्मीकि आश्रम में संदेशा भेजा,

सीता को अवध आने का,

एक बार पुनः निमंत्रण भेजा,


पर एक बार पुनः श्रीराम ने,

प्रजा को सीता के ऊपर रखा,

प्रजा की शंका समाधान हेतु,

पुनः खींच दी परीक्षा की रेखा,


सीता से उठा के पाक चरित्र की,

राम प्रतिज्ञा चाहते थे,

सम्पूर्ण सभा में सीता की पावनता,

सिद्ध कराना चाहते थे,



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