STORYMIRROR

निशान्त मिश्र

Others

4  

निशान्त मिश्र

Others

" बसंत का अभिनन्दन "

" बसंत का अभिनन्दन "

1 min
257

उत्तर प्रत्युत्तर गढ़ने में

बीत गया बाकी जीवन

किंतु संपुटित हो न सका

विचलित, विह्वल, औघड़ मन।


कल था नूतन, आज पुरातन

विस्मयकारी नवजीवन

विषय, विषाद, विवाद मुक्त

हो सकल अंकुरित, स्पंदन।


नवचेतना, नवविचार अरु

आत्मबोध, आत्मचिंतन

आरोहित हों नवपल्लव

हों अवरोहित झूठे दर्पण।


नवाचार हो, निर्विकार हो

करतल ध्वनि से उद्बोधन

नव्य ऋतु का अभिनंदन

नव्य ऋतु का अभिनंदन।


Rate this content
Log in