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निशान्त मिश्र

Inspirational

4.5  

निशान्त मिश्र

Inspirational

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता

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रात लंबी हो मगर, सूरज को आना चाहिए

इस अंधेरे में, कोई दीपक जलाना चाहिए।


रह गया कच्चा अगर, बारिश में गल बह जाएगा

हो तपिश कितनी मगर, खुद को तपाना चाहिए।


खोजने भागीरथी को, जो चला है एकला

लाख पर्वत राह में हों, लांघ जाना चाहिए।


कौन कहता है कि पत्थर में, कुसुम उगता नहीं

पत्थरों में बीज बोना, भी तो आना चाहिए।


है 'सही' काली बहुत, श्यामपट सी ज़िन्दगी

अक्षरों से गीत भी, इस पर सजाना चाहिए।


'है सही' सदियों तलक, हमने गुलामी गैर की

अब किताबों से नया, भारत बनाना चाहिए।


नीतियां बाधक बनी जो, ज्ञान अर्जन हेतु हैं

उन सभी कांटों को, रस्ते से हटाना चाहिए।


भारती की कल्पना से, ज्यों भरत आकार ले

ले शपथ हर एक बेटी, को पढ़ाना चाहिए।


गूंज हो जय हिन्द की, जयघोष भारत की सदा

रह गए पीछे हैं जो, उनको बढ़ाना चाहिए।


अल्प बहु संख्या नहीं, बस आर्थिक आधार हो

हर गणित को मानवों के, हित में होना चाहिए।


बालश्रम हो या कुपोषण, नौनिहालों की व्यथा

स्वार्थ की बलिवेदियों को, अब मिटाना चाहिए।


देश बसता है जो गांवों, में है जिसकी संस्कृति

उसके गांवों को सदा ही, लहलहाना चाहिए।


आत्मनिर्भर बन सके, प्रत्येक भारत में जना

हेतु इस हर एक को, पढ़ना पढ़ाना चाहिए।


धूप से बेवक्त ही, कुम्हला गए जो फूल हैं       

उन प्रसूनों को कभी तो, मुस्कुराना चाहिए।


बाढ़ में हैं बह गए, जिन पंछियों के घोसले

ला किनारे पे कहीं, उनको बसाना चाहिए।


है तपा डाला जिन्हें, दिनकर के निष्ठुर तेज ने

भाग उन पांवों के, छांव को भी आना चाहिए।


श्याम हो या गौर हो, मूक या कुछ और हो

आदमी को, आदमी का, ढंग आना चाहिए।


जल गईं जिस आग में, लाखों हज़ारों बेटियां

एकजुट हो उन प्रथाओं, को जलाना चाहिए।


राह में बेखौफ होकर, चल सकें सब बेटियां

देश में ऐसा कोई, क़ानून लाना चाहिए।


बिजलियों की रोशनी में, भी कभी दिखते नहीं

रोशनी से उन घरों को, झिलमिलाना चाहिए।


भोर की जो रश्मियां थीं, कोख में ही मिट गईं 

उनकी आभा से सहर को, जगमगाना चाहिए।


झुर्रियों में जो दशक, खुद ही कहानी हो गए

पोपले से, उन कपोलों को हंसाना चाहिए।


अनगिनत आशीष देकर, पेट भूखे सो गए

उन करों से, अब कटोरों को हटाना चाहिए।


अब तिरंगे में नहीं, लेकर तिरंगा हाथ में

वीर सीमा से, खबर के साथ आना चाहिए।


हो तमिल या हो मराठी, बंग या सौराष्ट्र हो

राष्ट्रभाषा हेतु, मन में मान आना चाहिए।


राह की दुश्वारियों को, बेबसी को, मनुज के

हौसलों के सामने अब, हार जाना चाहिए।


हर दिशा से इस धरा में, हो दिवस या निशा में

हर दशा में स्वतंत्रता का, भान आना चाहिए।



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