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निशान्त मिश्र

Abstract Classics Inspirational

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निशान्त मिश्र

Abstract Classics Inspirational

क्या सरल है? क्या कठिन है?

क्या सरल है? क्या कठिन है?

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धूप में चलना कठिन है ?

छांव में गलना कठिन है ?

क्या सरल है, क्या कठिन है,

ये बता पाना कठिन है।


ताप में चलना कठिन क्या,

ताप में जलना कठिन क्या !

ताप शोषित कर लिया तो,

ताप को धरना कठिन है।


कल कठिन था, अब सरल है

कल सरल था, अब कठिन है !

क्या सरल है, क्या कठिन है

ये बता पाना कठिन है।


प्रात का अरुणिम उजाला

दोपहर की अग्नि - शाला !

एक रवि, पर, दो पहर हैं

ये समझ पाना कठिन है।


क्या सरल है, क्या कठिन है,

ये बता पाना कठिन है।


सत्य कह पाना सरल है,

सत्य सह पाना कठिन है !

सत्य की आशा सरल है,

सत्य अपनाना कठिन है।


क्या सरल है, क्या कठिन है,

ये बता पाना कठिन है।


अमिय, प्रिय किसको नहीं है,

आत्ममंथन ही कठिन है !

आत्ममंथन साध्य भी हो,

विष पचा पाना कठिन है।


क्या सरल है, क्या कठिन है

ये बता पाना कठिन है।


विश्व की निंदा सरल है,

स्वयं पर हँसना कठिन है !

अश्रुमय करना सरल है,

पर, हँसा पाना कठिन है।


क्या सरल है, क्या कठिन है,

ये बता पाना कठिन है।


घात करना तो सरल है,

घात सहना ही कठिन है !

आस्था किंचित सरल है,

बस, बचा पाना कठिन है।


क्या सरल है, क्या कठिन है

ये बता पाना कठिन है !


मेघ सम गर्जन सरल है,

मेघ सम वृष्टि कठिन है!

अक्षि - सुख रोचि सरल है,

रोचि सम दृष्टि कठिन है !


भाव का अंतर प्रिये यह,

सब सरल है, सब कठिन है !


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