सृष्टि का नियम
सृष्टि का नियम
दंभ, स्वार्थ, स्वांग, की त्रिशाग्नि मत बहा
अन्तराग्नि प्र्ज्जवलित कर इन्हें यहीं जला।
तू पहाड़ क्यों बने, तू मनुष्य ही रहे
जीत हार सब यहीं, सृष्टि का नियम कहे।
ताल नीर सड़ गया, जो कभी बहा नहीं
प्राण शेष वो रहा, जो कभी रुका नहीं।
जीत हार, हर्ष शोक, तू कभी नहीं रुके
कुछ सदा रहा नहीं, सृष्टि का नियम कहे।
शून्य में निहारता, मौन मृतप्राय सा
घाव को संवारता, पशु असहाय सा।
तू नगण्य क्यों बने, श्वांस क्षीण क्यों बहे
ऊर्जा का स्रोत बन, सृष्टि का नियम कहे।