और क्या विकल्प है ??
और क्या विकल्प है ??
सार है असार का,
व्योम, द्युति भार का,
नत कभी नहीं रहा,
धृति कराहती रही,
तुम कृतघ्न क्यों रहे??
छद्म वेश में नियत,
श्वांस की बया लिए,
सार बिंदु छोड़कर,
क्षार को सदा जिए,
हो स्वयं मलिन लिए??
काठ, नम्र क्यों न हो?
क्षीर क्यों फटे नहीं?
क्यों मधुर, न विष बने?
आम्र, अम्ल क्यों न हो?
तुम सदा यही रहे!
सूर्य, तप किया करे,
भू, सदैव रक्तिमा,
कांति, चंद्र की सदा,
दोषयुक्त ही रहे?
तुम मृतक बने रहो!
जानुओं के पृष्ठ पर,
एक वज्र मार दो,
सिर ध्वजा, एक ही,
केसरी को धार दो,
और क्या विकल्प है??