स्मृतियाँ
स्मृतियाँ
शेष बची हैं अवशेषों में
अब भी विस्मृत स्मृतियाँ,
शेष बची हैं अवशेषों में
ही, अब संचित स्मृतियाँ!
समय सेतु पर श्रृंगित क्षण ही
हृदय पटल पर सज पाते हैं,
स्मृतियों की पुष्प मंजरी पर
भंंवरे बन मंडराते हैं!
शेष काल कलवित क्षण हैं
जो मधुर नहीं, वो याद नहीं,
ऐसे क्षण विस्मृत होकर भी
हिय के कांटे बन जाते हैं!
नहीं रहेगा सुनने वाला
अपने ही शब्दों के स्वर,
किंतु शब्द जीवित रहते हैं
स्मृतियों की शाखों पर!
मृगतृष्णा में डूब, स्वयं को
छलता, दुहता है मनुष्य
गर्भ नाद को विस्मृत करके
देह आश्रित, गर्वित पशु!
गर्वित द्वयपाए में संचित
मनु की अभिकृत स्मृतियाँ,
शेष नहीं हैं अवशेषों में
भी, अब संचित स्मृतियाँ!
अवशेषों में शेष कहां हैं
अभिलेखों में लेख कहां हैं,
अंबुज में अब मेघ कहां हैं
सूनी, अपकृत, स्मृतियाँ!
घोर घटाएं जब छाती हैं
छाती पे जब चढ़ आती हैं,
सनद तभी क्षण में आती हैं
स्मृत, तत्क्षण, विस्मृतियाँ!
आघातों का आदी है जो
उसे सुनाते, लोरी गाकर,
मातृभूमि जो बेच चुका है
उसे बुलाते, शौरी गाकर!
शूकर संग रहकर अर्जित
कीं, तुमने शूकर संस्कृतियां,
कैसे स्मृति में रखोगे
पुण्य जनित, सब स्मृतियाँ!