दिव्यांग सैनिक की व्यथा
दिव्यांग सैनिक की व्यथा

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कहो मातु मैं कैसे सोऊँ
लांघ हिमालय की छाती को
आ पहुंचा रिपु सीमा पर
अरि के ऐसे दुस्साहस पर
कैसे धैर्य संजोऊं ?
कहो मातु मैं कैसे सोऊँ ?
पग - पग आगे बढ़ता आता
पुण्य भूमि रज दलता जाता
स्वर्ण मुकुट पर आँख गड़ाता
रिपु उर शूल मैं बोऊँ !
कहो मातु मैं कैसे सोऊँ ?
माना असंख्य प्रहरी होंगे
रत्नाकर के लहरी होंगे
मातृभूमि पर मिटने का
स्वर्णिम अवसर खोऊँ ?
या अपनी किस्मत पर रोऊँ ?
कहो मातु मैं कैसे सोऊँ ??