क्या कुछ और कागज़ ज़ाया किया जाए चलो अब नाँव बनाई जाए। क्या कुछ और कागज़ ज़ाया किया जाए चलो अब नाँव बनाई जाए।
दुर्दिन दिन के भावावेश कहां दुर्दिन दिन के भावावेश कहां
एक इतिहास दिखता है अवशेषों में अवतरित.... एक इतिहास दिखता है अवशेषों में अवतरित....
ऐसे क्षण विस्मृत होकर भी हिय के कांटे बन जाते हैं! ऐसे क्षण विस्मृत होकर भी हिय के कांटे बन जाते हैं!
जोर जो इतना रहा वजूद का, राख में मिलना क्या वजूद का, जोर जो इतना रहा वजूद का, राख में मिलना क्या वजूद का,
बाँट ले उससे तू अपनी चिंताओं, अवसादों की घड़ी... बाँट ले उससे तू अपनी चिंताओं, अवसादों की घड़ी...