सूनापन
सूनापन
सूना सूना मन है मेरा
सूना सूना जीवन मेरा
श्रांत नहीं, ना ही उद्वेलित
रिक्त पड़ा है भावकोश क्यों
किसकी है मुझको अभिलाषा
सूना सूना मन है मेरा
सूना सूना जीवन मेरा
आज विहग इतने चुप क्यों हैं
उपवन क्यों इतना सूना है
उषा मौन निस्तब्ध अबोधित
किसने छीना यौवन उसका
पसरा है कैसा सन्नाटा
सूना सूना मन है मेरा
सूना सूना जीवन मेरा
शुष्क हुए रदपुट क्यों जाते
नयनों में इतना सूनापन
उच्छ्वासों में ताप नहीं है
कहां गईं धमनी की ध्वनियां
क्या काया में प्राण नहीं हैं
सूना सूना मन है मेरा
सूना सूना जीवन मेरा
कोपल क्यों इतने पीले हैं
कहां गई कोयल की कुह कुह
पनघट में भी राग नहीं है
क्यों श्रावण इतना फीका है
ये कैसी पीड़ा की ऋतु है
सूना सूना मन है मेरा
सूना सूना जीवन मेरा।