चक्रधर वंशी तजो

चक्रधर वंशी तजो

1 min
414


अधजला शव देखकर सहमी पड़ी हैं राधिकाएँ,

चक्रधर! वंशी तजो, अनुराग का पल टल चुका है।


धर, सुदर्शन हाथ सौ के पार गाली हो चुकी है।

अघ मनुजता भावनाएँ, सभ्यताएँ खो चुकी है।

शान्ति की गोधूलि का रवि, राहु भय से ढ़ल चुका है।

चक्रधर! वंशी तजो, अनुराग का पल टल चुका है।


क्या गदा कौमोदकी कर में सुशोभित ही रहेगी?

या किसी व्यभिचार के विपरीतता में भी उठेगी?

अब तुम्हारा रूप भावन, कृष्ण! सबको खल चुका है।

चक्रधर! वंशी तजो, अनुराग का पल टल चुका है।


हे सहस्त्राकाक्ष! क्या तुमको दिखाई दे रहा है?

या तुम्हारा इष्ट ही तुमसे विदाई ले रहा है?

रे सनातन! सभ्यता का शव निहारो, जल चुका है।

चक्रधर! वंशी तजो, अनुराग का पल टल चुका है।


Rate this content
Log in

More hindi poem from आनन्द बल्लभ

Similar hindi poem from Classics