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SHAKTI RAO MANI

Classics Inspirational

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SHAKTI RAO MANI

Classics Inspirational

मां तेरे आंचल में

मां तेरे आंचल में

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माँ तेरे आँचल में ही अपना-सा लगता है

दूर हूँ तेरे आँचल से तो सपना-सा लगता है।


अहजान जानों-जहान तू, प्रिय तू, पुराण-ब्रहमाण तू

ध्यान कैसे भंग होगा, ॐ उच्चारण भी माँ‌ सा लगता है।


अपने बचपन में मैंने तेरा बचपना भी देखा है

बचपन को याद करता हूँ तो प्यारा-सा लगता है।


माँ तेरे पहरे में कभी चैन से सोया था मैं

मखमली बिस्तर भी आज चुभता सा लगता है।


बाहर जाओगे तो पता चल जायेगा ! तेरे शब्द माँ

आज अंधड़ तैराक हूँ और एक बूंद दरिया सा लगता है।


मुझे तसल्ली देती, खुद का मन‌ सहमा सा लगता है

तेरे आशीर्वाद का डहरा सर पर सहरा सा लगता है।


वो दिन भी थे‌ कभी धूप ना लगती तेरी आँचल में

आज एक लौ भी जल जाये तो ज्वाला सा लगता है।


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