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SHAKTI RAO MANI

Abstract Inspirational Others

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SHAKTI RAO MANI

Abstract Inspirational Others

जिऊं तो सुहागन मरूं तो सुहागन

जिऊं तो सुहागन मरूं तो सुहागन

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सोलह बारे बरत रखूं न हो‌ कोई चुभन

फल में मांगू जिऊं तो सुहागन मरूं तो सुहागन।

मैं सजती तब थी जब सँवरती नहीं थी

मेरा सँवरना जैसे रुप तेरा मोहन।

जिंदगी हों या रास्ते तेरे हाथों से पार हुई

हाथ हैं कश्ती और कश्ती में मेरा मन।


मेरी‌ जिंदगी आप हो मेरा‌ भेद न जीवन न मरन

सुनी हो जायेगी कुसुम बिन बगिया के जैसे अभागन।

जब घड़ी आये मेरी तो लाली और सिंदूर लगाना

मैं फिर संवर जाऊं मोहन जब तेरी आँखें हो दर्पण।


झरना खींचें जब कश्ती तब छोड़ देना मन

लहरें बनकर पार कर दूँ कश्ती ऐसे होगा मिलन।

हरि तेरे अवतारों को जानूं पूरी कर देना ये प्रण

फल मैं मांगूँ जिऊं तो सुहागन मरूं तो सुहागन।


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