Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

SHAKTI RAO MANI

Abstract Romance

4  

SHAKTI RAO MANI

Abstract Romance

ऐ अक्ल होशियार कब तक

ऐ अक्ल होशियार कब तक

1 min
228


कभी तो दिल की भी सुनेगा ऐ अक्ल होशियार कब तक

अब्तर वो रस्ता ताके ही तेरा, तेरा ये ऐतबार कब तक।


आकिबत जद्दोजहद में है ये नजरें नज़रों को मिलने में

कभी तो नजर मिलाएगा आखिर रूठी अजार कब तक।


वो हसीना भी झुक जाती है जब नाराज अनमोल हो

बिखरने से पहले मान जाना ये तकरार कब तक।


चेहरे पर उसके ' राव' उदासी अच्छी नहीं लगती

तू खुद को ही मना ले ये रुख सूखा प्यार कब तक।


ये मान ले के अगर अजीज से रूठा तो खुद से रूठा है

खुदा भी देखे तेरी अक्ल का तेरे दिल से इंकार कब तक।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract