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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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लोग जीवन का मूल्य भुला आक्रोश में जीते हैं

लोग जीवन का मूल्य भुला आक्रोश में जीते हैं

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लोग जीवन का मूल्य भुला आक्रोश में जीते हैं

बर्बादी का मंजर लेकर के नेता के लिए जीते हैं।।


दो पैसे के लिए दाव पर प्राण को भी लगाते हैं

उठा-पटक लड़-झगड़ कर के मर मिट जाते हैं।।


बुलंदी छूने के लिए नेता कुछ भी करवा देते है

पर गरीब दुखिया के लिए एक आंसू ना रोते हैं।।


दंगा हो जाने पर गरीब भाग्य को दोष देते हैं

बेचारे गरीब क्या जाने पीछे कौन लोग होते हैं।।


मर जाते हैं मिट जाते हैं सरन में नेता के होते हैं

गरीब तो गरीब है साहब गरीब बिलखते रहते हैं।।


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