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Sandeep Kumar

Others

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Sandeep Kumar

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ढूंढे तुझको मेरी नजरें भीड़ ..

ढूंढे तुझको मेरी नजरें भीड़ ..

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ढूंढे तुझको मेरी नजरें

भीड़ भरी संसार में

आती नजर नहीं तुम

चिपकी हो जो दीवार से।।


छोटी सी दुनिया बसी

मेरी थी इस प्यार से

लुट गई खड़ी दुपहरी

देखते रहे बाजार में।।


न कर पाए पुरी उसकी

मांगे थी जो सिंगार की

छोड़ चली गई वह मुझको

बद से बदतर हालात में।।


इसीलिए लिखता हूं मैं

दर्द दिल की सिंगार में

पढ़ कर खुश है होती

बेवफा अपने प्यार में।।


दुआ कर देती भगवान से

उम्र लगे सारी संसार की

सदा सदा लिखता रहे

पीड़ा वफादार की।।


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