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SHAKTI RAO MANI

Abstract Others

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SHAKTI RAO MANI

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समंदर तो नहीं।

समंदर तो नहीं।

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इस तरह न रूठा कर मेरा दूसरा मुकद्दर तो नहीं

दायरे की दरिया हूं सूख जाऊंगा कोई समंदर तो नहीं।


जिया नाराजगी में समझ खो देती है कफ़न मांगती है

पिया तेरे दामन ढकने तक तो हूं पर वो चादर तो नहीं।


कुछ बाते समझ नहीं पाता तेरे रूठने पर भी

ख्वाहिशें पिया – सी किया करो हम कोई सिकंदर तो नहीं।


गलियों – गलियों से गांव बनाया है तेरे मन में

यूं गुजर जाऊं वो सीधी सड़क का शहर तो नहीं।


रूठना तो कुछ समय के लिए, सिर्फ दरिया हूं

समंदर से कैसे टकराऊँ नहर हूं, कोई कहर तो नहीं।


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