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SHAKTI RAO MANI

Abstract Others

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SHAKTI RAO MANI

Abstract Others

जहर ख़ाक हैं

जहर ख़ाक हैं

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अब बस बहुत हुआ सच तेरा सफर ख़ाक है

कुछ हवाएं लगी थी मुझे अब्तर हुए सरसर ख़ाक है

मिहिर कहता के ज्वार से मेरी, आग राख है

मैं प्रचंड हो जाऊं तो दिन दुपहरिया पहर ख़ाक है।

मोहब्बत इश्क को लिखने वालों में से नहीं हूं

आग तो लगेगी तेरी गली छोड़ तेरा शहर ख़ाक है।

अब तो हवाओं को भी पता चल गई मेरी ख़ामोशी

जा कर कहती है लहर शांत रहें वरना समुंदर ख़ाक है।

‘राव’ के लिखने में अब बहर ख़ाक है

शब्दों को समझना कभी मेरे, जहर ख़ाक हैं


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