Pradeep Pokhriyal
Tragedy
पेट पीठ से मिलने ही वाला था ,
की रोटी दिखाई दी ,
और आँख बंद हो गयी ।
गज भर के आँचल से तन ढाँपती गोरी ,
साहूकार के घर गयी ,
बेटे के कफ़न से ,
बाप दारू पी गया ,
प्रत्यंचा
पुकार
अपने
मेरी आवाज
एतबार
अभिनय
पेड़
कल्पना
मान्यता
अविनाशिनी
बिक रही माँ, बहन, बेटी, खरीददार कौन है ! बिक रही माँ, बहन, बेटी, खरीददार कौन है !
मच्छर की फौज आकर, हर शाम सता रही। मच्छर की फौज आकर, हर शाम सता रही।
सोच लो, जीवन के बदले जीवन, उन्होंने भी ये प्रस्ताव बनाया है, राजमार्ग को चौड़ा करने सोच लो, जीवन के बदले जीवन, उन्होंने भी ये प्रस्ताव बनाया है, राजमार्ग को च...
अपनी कुर्सी के खातिर यह तलवे भी चाटेंगे, चुनावी सीजन है चुनावी कीड़े काटेंगे। अपनी कुर्सी के खातिर यह तलवे भी चाटेंगे, चुनावी सीजन है चुनावी कीड़े काटेंगे...
बादल भी अब मचल रहा, आँखों में छा जाने को ! बादल भी अब मचल रहा, आँखों में छा जाने को !
कहते हैं यहीं राम का नाम है, दुनिया में यही विधान है। कहते हैं यहीं राम का नाम है, दुनिया में यही विधान है।
ईर्ष्या द्वेष की गर्मी से पृथ्वी का मौसम बदल रहा। ईर्ष्या द्वेष की गर्मी से पृथ्वी का मौसम बदल रहा।
तुझे इतनी सी बात क्यों, समझ में नहीं आती है। तुझे इतनी सी बात क्यों, समझ में नहीं आती है।
यह महाभारत का चीरहरण कब छोड़ोगे कब तुम पांडव बन बेमतलब का गुरूर तोड़ोगे। यह महाभारत का चीरहरण कब छोड़ोगे कब तुम पांडव बन बेमतलब का गुरूर तोड़ोगे।
या सिर्फ एक रस्म निभाई है हाँ इसी हिन्दी से हमने नज़रें चुराई है। या सिर्फ एक रस्म निभाई है हाँ इसी हिन्दी से हमने नज़रें चुराई है।
ना समझ पायी वो अंकल के गन्दे इरादे कितनी तड़पी होगी, कितना रोयी ना समझ पायी वो अंकल के गन्दे इरादे कितनी तड़पी होगी, कितना रोयी
वैसे भी अब भुलना-भुलाना तो एक आदत सी हो गयी। वैसे भी अब भुलना-भुलाना तो एक आदत सी हो गयी।
उस हाथ को सहना पड़ रहा है जूते- चप्पलों का भार। उस हाथ को सहना पड़ रहा है जूते- चप्पलों का भार।
मित्र तो हम लाख बना लेते हैं, पर एहसास मानो मिट गया है। मित्र तो हम लाख बना लेते हैं, पर एहसास मानो मिट गया है।
धरती को माता कह दुलराया फिर कीटनाशक जहर भी पिलाया। धरती को माता कह दुलराया फिर कीटनाशक जहर भी पिलाया।
सरहद तो सारा अपना है पर हद को किसने समझा है। सरहद तो सारा अपना है पर हद को किसने समझा है।
किसी को अगले पल की चिंता है, कोई अपनी करनी पर शर्मिंदा है। किसी को अगले पल की चिंता है, कोई अपनी करनी पर शर्मिंदा है।
ना नशा ना मज़ा, ना नशा, ना मज़ा, ये तो मौत की सज़ा। ना नशा ना मज़ा, ना नशा, ना मज़ा, ये तो मौत की सज़ा।
जहाँ मौत का सब साजो सामान बिक रहा है। क्या खूब है सजाया इंसान की महफिल को जहाँ मौत का सब साजो सामान बिक रहा है। क्या खूब है सजाया इंसान की महफिल को
नींद से जागी उमर को पकड़े बाढ़ बनकर किताबों में रिस रही है। नींद से जागी उमर को पकड़े बाढ़ बनकर किताबों में रिस रही है।