गांव का प्यार
गांव का प्यार
बुराई भरे जमाने मे अब ढल चुकी है वो
कई रास्ते कई मंज़िले बदल चुकी है वो
पागल हो तुम जो उसी मोड़ पर खड़े हो
तुम्हारी सोच से आगे निकल चुकी है वो
हां तुम्हारे पाँव अभी भी लड़खड़ा रहे हैं
उसकी मत सोचो तुम संभल चुकी है वो
तुम्हारी छुअन उसको ठंडक पहुंचाती थी
तुम अब दूर हो पूरी अब जल चुकी है वो
जिस विरह जहर को तुम पीने की सोचो
उस जहर को पहले ही निगल चुकी है वो
कोई बेहतर मिल गया उसे तुम क्या हो
तुम्हारे 'प्रेम' बगीचे को कुचल चुकी है वो।