भूख का भूगोल
भूख का भूगोल
भूख की कोई जाति नहीं होती
नहीं कोई चेहरा होता है भूख का
भूख अंतड़ियों को जलाती है
उसका भूगोल तो बस देह जानती है।
सिंककर जब ऊपर की खाल
नीचे की खाल से चिपक जाती है.
भूख बहुत बड़ी यायावर नहीं होती
वो तो बस झुग्गी बस्ती में,
फुटपाथ, मंदिरों के पास दिखने वाले
चेहरों में होती है
कोई उम्र नहीं होती है उसकी
पर बहुत सी ज़िंदगियों को
पार करा दिया करती है।
भूख बचपन, बुढ़ापा, यौवन नहीं देखती
भूख जलता जेठ, भीगा सावन नहीं देखती
भूख विकास की परिभाषा नहीं जानती
प्रकाश का महत्व नहीं जानती।
वो तो बस सूखी रोटी जानती है
और उसपर रखा नमक, प्याज.
भूख तड़पाती है सभी को
दो घंटे भी न खाने पर।
क्या गुजरती होगी भूख पर भी
जब वो कई दिनों से
भूखी हड्डियों को खाती होगी ?
